यादों के दरीचों से तुझे जब भी पुकारा।
तन्हाई के टूटे हुए पत्थर निकल आये।-आदिल मंसूरी
जब कभी तुझको पुकारा मेरी तन्हाई ने।
बू उड़ी फूल से, तस्वीर से साया निकला॥-मुजफ्फर वारसी
जो थोड़ी देर न आता ख्याले तन्हाई।
तुम्हारे शहर की हद से निकल गये होते॥-जमील नजर
न किसी दोस्त ने पूछा न किसी दुश्मन ने।
मुद्दतों शहर में अपना यही सामान रहा॥-तुर्राब शैदा
गौर से सुनकर तेरी तन्हाईयों की दास्तां।
सर झुका कर देर तक, क्या जानिए, सोचा किये।-नजीर बनारसी
इक जमाने को रखा, तेरे ताअल्लुक से अजीज।
सिलसिला गम का बहुत दूर तलक जाता है॥-शाहिद अश्की
खुदा की देन है, जिसको नसीब हो जाये।
हर एक दिल को गमे-जांविदा नहीं मिलता॥-असर सहबाई
शिकवे तू शौक से कर, वस्ल में, लेकिन ऐ दिल।
बात कुछ ऐसी न बिगड़े कि बना भी न सकूं॥-अमीर मीनाई
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