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Wednesday 2 April 2014

प्रेसपालिका : 01अप्रेल, 2014 में प्रकाशित शायरी

गेसुओं का संवरना कयामत सही।
गेसुओं का बिखरना भी कुछ कम नहीं॥ शहरयार


जुल्फ रुख से जो वो हटा देगा।
बज्मे-हस्ती को जगमगा देगा॥ माहिर रतलामी


गुजारी है देखने में उसको, सारी जिन्दगी मैंने।
मगर ये शौक है, देखा नहीं गोया कभी मैंने॥ नातिक लखनवी


कुछ अब के अजब हसरते-दीदार है वरना।
क्या गुल नहीं देखे, कि गुलिस्तां नहीं देखा॥ उम्मेद अमेठवी


चलो, अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें।
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा॥ दुष्यन्त कुमार


अल्लाह रे बेखुदी कि तेरे पास बैठ कर।
तेरा ही इन्तजार किया है कभी-कभी॥ नरेश कुमार शाद


किनारों से मुझे ऐ नाखुदाओ, दूर ही रखना।
वहां लेकर चलो, तूफां जहां से उठने वाला है॥ अली जलीली

मत पूछो कि क्या मांग के रोये खुदा से।
यूं समझो हुआ खात्मा, आज अपनी दुआ का॥ हफीज जौनपुरी

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