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Friday 15 March 2013

प्रेसपालिका : 16 फरवरी, 2013 में प्रकाशित शायरी

सबको पता है बाढ आयेगी; घर भी यकीनन डूबेंगे|
फिर भी साहिल पर बैठे हैं, बस्ती नयी बसाये लोग॥

बस अभी आये अभी लेने लगे जाने का नाम।
तुमको जाना था तो क्यों तुमने लिया आने का नाम॥

वह फकत दो गज जमीं में कैद होकर रह गया।
जो ये कहता था कि ये सब कुछ हमारा है मियां॥

मैंने कहा कि तोड़िये शर्मो हया की बंदिशें।
मुझसे नजर मिलाइये, कहने लगे अभी नहीं॥

ये लाजिम तो नहीं है साहिबें ईमान हो जायें।
मगर इतना जरूर है कि हम इंसान हो जायें॥

दुनियादारी के हमें कुछ और भी तो काम हैं।
कब तलक उलझे हुए हम तेरे बालों में रहें॥

यह कह के हमने छोड़ दिया जिन्दगी का साथ।
कब तक हम अपने दर्द की यारो दवा करें॥

स्त्रोत : दीवाने-ए-मयंक, के. के. सिंह ‘मयंक’ अकबराबादी

Sunday 10 March 2013

प्रेसपालिका : 01 फरवरी, 2013 में प्रकाशित शायरी

मैं मांगने गया था वहां जिन्दगी मगर|
फरमान मेरी मौत का इरशाद हो गया॥

नफरतों की चोटियों पर बैठकर रोता रहा|
जिसने दिल की खाइयों को प्यार से पाटा न था॥

पहले मेरे कसीदे पढे, फिर नजर से गिराया गया|
जर्मे उल्फत की इतनी सजा, आसमां से गिराया गया॥

यारों ये कहावत भी इक जिन्दा हकीकत है|
किस्मत में कनीजों के रनिवास नहीं होता॥

खेलने के लिये जिसको दिल चाहिये, वह खिलौनों से कैसे बहल जायेगा|
फिर न आयेगा वापस कभी लौटकर, तीर जो भी कमां से निकल जायेगा॥

ऐ दोस्त जमीर अपना इक ऐसा नजूमी (ज्योतिषी) है|
आगाज से पहले ही अंजाम बता देगा॥

आइये आ जाइये अब तो करीब आ जाइये|
प्यास नजरों की बुझाये इक जमाना हो गया॥

स्त्रोत : दीवाने-ए-मयंक, के. के. सिंह ‘मयंक’ अकबराबादी