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Friday 17 May 2013

प्रेसपालिका : 16 मई, 2013 में प्रकाशित शायरी

मैंने कहा कि पड़ा हूँ मैं मुद्दत से दर पे आपके।
बिगड़ी मेरी बनाइये, कहने लगे अभी नहीं॥

शिकायत मत करो उनसे, कोई वादा खिलाफी की।
अरे ये भूलने वाले हैं, अकसर भूल जाते हैं॥

कैसे करें इजहारे मुहब्बत, दोनों हैं दुश्‍वारी में।
हम अपनी हुशियारी में हैं, वह अपनी हुशियारी में॥

कशिश वह चाहिये मुझको किसी के हुस्ने रंगी की।
कि बज्में नाज में जाने को मैं मजबूर हो जाऊं॥

गुनाहों के उभर आये हैं, इतने दाग चेहरे पर।
अगर अब आइना देखें तो हम हैरान हो जायें॥

पस्तियों को बस जरा अंगड़ाईयॉं लेने तो दो।
आके कदमों पर गिरेंगी इनके फिर ऊंचाइयॉं॥

वह हमारा, हम हैं उसके, दोनों ही हैं उसके घर।
चाहे मस्जिद में रहें हम, या शिवालों में रहें॥

ढाने लगेगा जौरो सितम सुनके और भी।
जौरो सितम का उसके अगर हम गिला करें॥

जी रहे हैं जिन्दगी खाना बदोशों की तरह।
इन घरों की भीड़ में भी अपना घर कोई नहीं॥

स्त्रोत : दीवाने-ए-मयंक, के. के. सिंह ‘मयंक’ अकबराबादी

Friday 3 May 2013

प्रेसपालिका : 01 मई, 2013 में प्रकाशित शायरी

ढूंढने से भी नहीं मिलता हमें अपना वजूद।
हो गयी हैं, आज तन्हा और भी तन्हाईयॉं॥

उनकी  बज्मे  नाज  में  कुछ  मांगने  जाते नहीं।
अपना मकसद है कि बस उनके खयालों में रहें॥

इस  दिखावे  के  दौर  में  हमने, हर  कदम  पर  फरेब  खाये  हैं।
भूल जाऊं मैं किस तरह उसको, जहनो दिल पर जो मेरे छाये हैं॥

बदलते  मौसमों  के  बदले  तेवर,  खबर  तूफान  की  देते  नहीं हैं।
वो क्या बांटेंगे अपनी मुस्कुराहट, जो औरों को खुशी देते नहीं हैं॥

बात कुछ तो है जो उनकी मुझ पे है नजरे करम।
बेसबब  कोई  किसी  पर  मेहरबां  होता  नहीं॥

सभी को देख लिया मैंने वक्त पड़ने पर।
हर एक शख्स को मैं आजमाये बैठा हूँ॥

गर यकीं  मुझ पर  नहीं तो  आइनों  से  पूछ लो।
दिल हंसी मिलता है तो सूरत हंसी मिलती नहीं॥

झुकी-झुकी सी निगाहों से मिल गया मुझको।
न  दो  सवाल  का  मेरे  जवाब,  रहने  दो॥

मुझको डर है खुद अपनी ही नजर न उसको लग जाये।
आईने  में  देख  के  जब  भी  अपना  रूप  संवारे  वह॥

स्त्रोत : दीवाने-ए-मयंक, के. के. सिंह ‘मयंक’ अकबराबादी