Popular Posts : Last 7 Days

Friday 21 June 2013

प्रेसपालिका : 16 जून, 2013 में प्रकाशित शायरी

कहता है वह कि मेरे लिये तुमने क्या किया।
उस पर मता-ए-जीस्त (जीवन की दौलत) लुटाने के बावजूद॥

तू ही मकसद, तू ही मंजिल, तू ही किश्ती, तू ही साहिल।
हकीकत में जहाने आरजू का मुद्दआ (ख्वाहिश) तू है ॥

नाशाद (दु:खी) था मैं और भी नाशाद हो गया ।
जब से गमों की कैद से आजाद हो गया॥

दिल दे के तुम्हें अपना हम भूल गये कब के।
अपनों पे जो करते हैं, अहसान नहीं होता॥

इम्तिहां, इम्तिहां इम्तिहां, उम्र भर आजमाया गया।
तब कहीं जाके टूटा भरम, आइना जब दिखाया गया॥

रो लेता हूँ जी भरकर जब अपनी तबाही पर।
फिर मुझको तबाही का एहसास नहीं होता॥

छोड़ दे पीछा मेरा लिल्लाह (खुदा के वास्ते) अब तो जिन्दगी।
तुझको सीने से लगाये इक जमाना हो गया॥

जिन्दगी की राह में चलिये न आँखें मूंदकर।
वरना अंधों की तरह ही ठोकरें खायेंगे आप॥

कहने को तो एक हुए हैं दोनों के दिल आज।
दूरी फिर क्यों बनी हुई है, तुम दोनों के बीच॥

स्त्रोत : दीवाने-ए-मयंक, के. के. सिंह ‘मयंक’ अकबराबादी

Sunday 2 June 2013

प्रेसपालिका : 01 जून, 2013 में प्रकाशित शायरी

जब भी मुड़कर देखता हूँ, कुछ नजर आता नहीं।
कौन देता है सदायें, शाम ढल जाने के बाद॥

दिल तोड़ने पे मेरा जमाना लगा रहा।
दिल टूटता भी कैसे जो फौलाद हो गया॥

किसकी अदालत में वह जाये, किससे मांगे इंसाफ।
कोई भी पुरसा हाल नहीं है, आज यहॉं फरियादी का॥

इस तरह तड़पाया मेरी याद ने उसको कि बस।
भूलने वाले का मुझको फिर पयाम आ ही गया॥

देख लो दामन हमारा आज भी बेदाग है।
मयकदे में यूं तो हमने जाम उछाले हैं बहुत॥

मुखातिब उनको करने को, बदलते रह गये पहलू।
मुहब्बत का सिला पाया न, इस करवट न उस करवट॥

समझने वाले मेरे दिल का मुद्दआ समझें।
है लफ्ज लफ्ज से जाहिर, मेरी जंबा का मिजाज॥

बज्म में वह माहरू (चन्द्रमुखी) जब बेनकाब आने को है।
किसलिये दीपक जलायें, शाम ढल जाने के बाद॥

लोग कहते हैं कि आप आये कयामत आ गयी।
अब न आयेगी कयामत आप से मिलने के बाद॥

स्त्रोत : दीवाने-ए-मयंक, के. के. सिंह ‘मयंक’ अकबराबादी