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Saturday 6 July 2013

प्रेसपालिका : 01 जुलाई, 2013 में प्रकाशित शायरी

नजर उठाके उसे देखना था जुर्म मगर।
हजार बार मेरे सामने से गुजरी थी॥ अमीर कजलबाश

अब ये तय करके चला हूँ कि भटकने के लिये।
जिस तरफ राह न जाती हो उधर जाऊंगा ॥ डॉ. जमशेद अनजान

ओ मेरे मन की आकुलता मेरा साथ छोड़ मत देना ।
अभी हृदय में घुट-घुटकर जीने का अरमान शेष है॥ शिव कुमार शुक्ल

शर्म है आंखों में और न है जुबां पर बंदिशें।
यूं तो करता है जमाने भर से वो परदा बहुत॥ राजू रंगीला

तुम मो तन्हा रास्ते में छोड़कर गुम हो गये।
मुद्दतों मुझको मेरी रुसवाईयों ने खत लिखे॥ ओंकार गुलशन

यूं तो जो पाया सफर में, सब सफर में रह गया।
रास्ते का आखिरी मंजर नजर में रह गया॥ मखूर सईदी

कैसे वो सबका मित्र बना, हम न बन सके।
सच पूछिए तो उसने दिखावा किया बहुत॥ निश्तर खानकाही

खुशी में झूमकर, हंसने से पहले, ये समझ लेना।
हंसी अक्सर कई जख्मों के टांके खोल देती है॥ अशोक साहिल

कर दिया मैंने जमाने को उसी के रू-ब-रू।
हाथ धोकर फिर मेरे पीछे जमाना पड़ गया॥ कृष्ण सुकुमार

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