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Wednesday 2 April 2014

प्रेसपालिका : 01अप्रेल, 2014 में प्रकाशित शायरी

गेसुओं का संवरना कयामत सही।
गेसुओं का बिखरना भी कुछ कम नहीं॥ शहरयार


जुल्फ रुख से जो वो हटा देगा।
बज्मे-हस्ती को जगमगा देगा॥ माहिर रतलामी


गुजारी है देखने में उसको, सारी जिन्दगी मैंने।
मगर ये शौक है, देखा नहीं गोया कभी मैंने॥ नातिक लखनवी


कुछ अब के अजब हसरते-दीदार है वरना।
क्या गुल नहीं देखे, कि गुलिस्तां नहीं देखा॥ उम्मेद अमेठवी


चलो, अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें।
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा॥ दुष्यन्त कुमार


अल्लाह रे बेखुदी कि तेरे पास बैठ कर।
तेरा ही इन्तजार किया है कभी-कभी॥ नरेश कुमार शाद


किनारों से मुझे ऐ नाखुदाओ, दूर ही रखना।
वहां लेकर चलो, तूफां जहां से उठने वाला है॥ अली जलीली

मत पूछो कि क्या मांग के रोये खुदा से।
यूं समझो हुआ खात्मा, आज अपनी दुआ का॥ हफीज जौनपुरी

Tuesday 18 March 2014

प्रेसपालिका : 16 मार्च, 2014 में प्रकाशित शायरी

नहीं शिकवा मुझे कुछ तेरी बेवफाई का हरगिज।
गिला तब हो अगर तूने किसी से भी निभाई हो॥ अज्ञात

जब तब थे मिले ये तो जुदाई थी कयामत।
अब मिलके बिछुड़ जाने का गम याद रहेगा॥ सुहेल मुरादाबादी


जैसे कोई डूबने वाला चीखे पानी में।
अब तो मेरा हर इक सपना यूँ मुझ बिन चिल्लाता है॥ नजबी

मुहब्बत तक नादानी सही, लेकिन खिरदमन्दो।
जवानी में ये नादानी हंसी मालूम होती है॥ नरेश कुमार शाद


बरसों के बाद बाग में चहकी हैं बुलबुलें।
गुमसुम हैं मगर पेड़ सभी, साथी क्या वजह हुई॥ डॉ. उर्मिलेश

दिल की मजबूरी की क्या शै है कि दर से अपने।
उसने सौ बार उठाया तो मैं सौ बार आया॥ हसरत मोहानी


दुनिया ने किसका राहे-फानी में दिया है साथ।
तुम भी चले-चलो यूँ ही, जब तक हवा चले॥ मिर्जा जौक

तुम मुस्कुरा दिये तो उम्मीदें भीं हँस पड़ी।
दिल डूबने को था के किनारा मिला मुझे॥ मुस्फा सबा

Tuesday 4 March 2014

प्रेसपालिका : 01 मार्च, 2014 में प्रकाशित शायरी


यादों के दरीचों से तुझे जब भी पुकारा।
तन्हाई के टूटे हुए पत्थर निकल आये।-आदिल मंसूरी


जब कभी तुझको पुकारा मेरी तन्हाई ने।
बू उड़ी फूल से, तस्वीर से साया निकला॥-मुजफ्फर वारसी

जो थोड़ी देर न आता ख्याले तन्हाई।
तुम्हारे शहर की हद से निकल गये होते॥-जमील नजर

न किसी दोस्त ने पूछा न किसी दुश्मन ने।
मुद्दतों शहर में अपना यही सामान रहा॥-तुर्राब शैदा


गौर से सुनकर तेरी तन्हाईयों की दास्तां।
सर झुका कर देर तक, क्या जानिए, सोचा किये।-नजीर बनारसी

इक जमाने को रखा, तेरे ताअल्लुक से अजीज।
सिलसिला गम का बहुत दूर तलक जाता है॥-शाहिद अश्की

खुदा की देन है, जिसको नसीब हो जाये।
हर एक दिल को गमे-जांविदा नहीं मिलता॥-असर सहबाई

शिकवे तू शौक से कर, वस्ल में, लेकिन ऐ दिल।
बात कुछ ऐसी न बिगड़े कि बना भी न सकूं॥-अमीर मीनाई

Monday 24 February 2014

प्रेसपालिका : 16 फरवरी, 2014 में प्रकाशित शायरी

तुम्हारी याद में पहरों उदास रहता हूँ।
मिली है ‘मस्त’ की जब से खबर, उदास हो तुम॥-मस्त रहमानी

एक उम्र कट गयी है तेरे इन्तजार में।
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिनसे एक रात॥-फिराक गोरखपुरी

हमने माना कि तगाफुल (उपेक्षा) न करोगे, लेकिन।
खाक हो जायेंगे हम, तुमको खबर होने तक॥-मिर्जा गालिब

सहरा ना देती अगर मौजे-तूफां।
डुबो ही दिया था, हमें नाखुदा ने॥-मकीन अहमद क्लीम

खत्म ही नहीं होते सिलसिले सवालों के।
सिलसिले सवालों के, और खामुशी मेरी॥-इकबाल उमर

हम जिस पे मर रहे हैं, वो है बात ही कुछ और।
आलम में तुझसा लाख सही, तू मगर कहॉं?-हाली पानीपती

कुछ अब के अजब हसरते-दीदार है वरना।
क्या गुल नहीं देखे, कि गुलिस्तां नहीं देखा?-उम्मेद अमेठवी

अन्दाज अपना देखते हैं आईने में वो।
और ये भी देखते हैं, कोई देखता न हो॥-निजाम रामपुरी

Thursday 30 January 2014

प्रेसपालिका : 01 फरवरी, 2014 में प्रकाशित शायरी

इश्क करना है तो फिर इश्क की तौहीन न कर।
या तो बेहोश न हो, हो तो न फिर होश में आ॥-आ. ना. मुल्ला

हम तो डूबकर कश्ती को, खुद ही पार लगाएंगे।
तूफां से गर बच निकले, साहिल से जा टकराएंगे॥-माहिरूल कादरी

अंगड़ाई ले के अपना मुझ पर खुमार डाला।
काफिर की इस अदा ने, बस मुझको मार डाला॥-मुसहफ़ी

वो भी शायद रो पड़े वीरान कागज देखकर।
मैंने उनको आखिरी बात में लिखा कुछ भी नहीं है॥-निजाम रामपुरी

सुनी-सुनायी बात नहीं है, अपने ऊपर बीती है।
फूल निकलते हैं शोलों से, चाहत आग लगाये तो।-अन्दलीब शादानी

मुहब्बत खुद-ब-खुद इक रोज दिल का साज बन जाती।

अगर दिल की हर एक धड़कन मेरी आवाज बन जाती॥-एकता शबनम

दिन-रात की ये बेचैनी है, ये आठ पहर का रोना है।
आसार बुरे हैं फुरकत में, मालूम नहीं क्या होना है॥-अकबर इलाहबादी

कभी तकदीर का मातम, कभी दुनिया का गिला।
मंजिले-इश्क के हर गम पे रोना आया॥-शकील बदायूंनी

यही रफ्तार का अन्दाजा है तो क्या ठिकाना है।
खुदा जाने कहॉं छिपना पड़े जाकर कयामत को॥-आगा शाइर

किसी तकदीर से पहले संवरना जिनका मुश्किल है।
तेरी जुल्फों में कुछ ऐसे भी खम महसूस करता हूँ॥-अजीज वारसी

बहाना मिल न जाए बिजलियों को टूट पड़ने का।
कलेजा कांपता है आशियां को आशियां कहते॥-असर लखनवी

मैं सोचता हूँ जमाने का हाल क्या होगा।
अगर उलझी हुई जुल्फ तूने सुलझाई॥-अहमद राही

Friday 17 January 2014

प्रेसपालिका : 16 जनवरी, 2014 में प्रकाशित शायरी

मुझे रोकेगा तू ऐ नाखुदा क्या गर्क होने से,
कि जिनको डूबना है, डूब जाते हैं सफीनों में।-डॉ. इकबाल

जिन्दगी गम सही, मगर इसका-
यह तो मतलब नहीं कि मर जाएं!-अखगर शहानी

जिन्दगी को संभाल कर रखिए,
जिन्दगी मौत की अमानत है।-बिस्मिल सईदी

दुनिया संवार दी है, जुल्फों को क्या संवारा?
जी में ये आ रहा है, मुंह चूम लूं तुम्हारा॥-हीरा लाल फलक

तुमको फुरसत ही न थी, हुस्न की आराईश से,
कैसे गुजरे मेरे दिन रात, तुम्हें क्या मालूम!!-मजहर नदीम

दुश्मनी जम कर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे।
जब कभी हम दोस्त हो जाएं, शरमिन्दा न हों॥-बशीर बद्र

खुद की नजर में हो खूबसूरत मगर।
आईना देख लोगे तो डर जाओगे॥-आसिफ रोहतासवी

Saturday 4 January 2014

प्रेसपालिका : 01 जनवरी, 2014 में प्रकाशित शायरी

जमीं ने चूम लिया, आसमां ने थाम लिया।
मेरे लरजते लबों ने जो तेरा नाम लिया॥-एकता शबनम

कभी कहा न किसी से तेरे फसाने को।
न जाने कैसे खबर हो गयी जमाने को॥-कमर जलालवी

इश्क में और कुछ नहीं मिलता।
सैकड़ों गम नसीब होते हैं॥-नूह नारवी

हँसते हुए फूलों पे नजर है, मगर इनमें।
हम तेरे तबस्सुम की अदा ढूँढ रहे हैं॥-तमन्ना जमाली

तुमसे जुदा हुए तो जमाना गुजर गया।
लेकिन तेरी कसम, तेरा अब भी ख्याल है॥-जकी काकोरवी

तुम तो दिल मांगो हो, यहॉं जान तलक हाजिर है।
बात ये भी है कोई आपके फरमाने की॥-अहसन 

चंद दिन, आह मियां, मैं भी खुदाई कर लूं।
झूठ ही कह दो कि हां, तुमसे मुहब्बत है हमें॥-खाकसार

तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो।
तुम को देखें कि तुम से बात करें॥-फिराक

खुदा के वास्ते आँखों से पोंछ लो आँसू।
रहेगा कौन टपकते हुए मकानों में॥-शांति सबा

इश्क के खेल से बचते हैं नौजवां अक्सर।
ये हुस्न वाले ही शौकीन बना देते हैं॥-जिगर श्योपुरी

मेरी रुसवाई में वो भी हैं बराबर के शरीक।
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है॥-अहमद शहजाद

बातों-बातों में कोई बात खटक जाती है।
एक-दो लफ्ज ही बेगाना बना देते हैं॥-शमीम तारिफ