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Monday 1 October 2012

प्रेसपालिका 01 अक्टूबर, 2012 में प्रकाशित शायरी

खतो-खिताबत की सदा रस्म जारी रखना|
भूल जाना न हमें, याद हमारी रखना॥ 
-अज्ञात
तुमने यह फूल जो जुल्फों में सजा रखा है|
इक दिया है जो अंधेरे में जला रखा है॥
-कतील शिफाई
तुम मुस्कुरा दिये तो उम्मीदें भी हंस पड़ी|
दिल डूबने को था के किनारा मिल जाये॥
-मुस्तफा सबा
जब से देखी है इक झलक तेरी|
मेरी आँखों में नूर रहता है॥
-साहिर अबोहरी
उनसे नजर मिली थी, बस इतना ही याद है|
छोटी-सी-वारदात कहॉं ले गयी मुझे॥
-कतील शिफाई
अब तो अपनी शक्ल भी पहचान में आती नहीं|
एक मुद्दत हो गयी है आईना देखे हुए॥
-जिगर श्योपुरी
खिजा के दौर में उस पर बहार आ जाये|
तेरी निगाह को जिस पर भी प्यार आ जाये॥
-मजहर नसीम
पूछता फिरता हूँ मैं उसकी दिखाकर तस्वीर|
मुझको बतलाये कहीं देखा है ऐसा कोई?
-अकबर दानापुरी
मुझे ना पाने का सबब, तुम्हें हर वक्त सतायेगा|
मुझ जैसा हो चाहने वाला, अहसास सदा रुलायेगा|
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा  'निरंकुश'
एक नये अन्दाज से तरकश सजा के शोख ने|
खून का दरिया बहाया, सब अदा कहते रहे॥
-आजम फतेहपुरी
रेत पर लिक्खे हुए नामों को पढकर देख लो|
आज तन्हा रह गया हूँ, कल मगर ऐसा न था॥
-अमीर कजलबाश
मेरी चाहत की बहुत लम्बी सजा दो मुझको!
सौ वर्ष तन्हाई में जीने की बद्दुआ दो मुझको!!
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा  'निरंकुश'
स्त्रोत : प्रेसपालिका, 01 अक्टूबर, 2012

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