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Friday 7 December 2012

प्रेसपालिका : 01 दिसम्बर, 2012 में प्रकाशित शायरी

कोई तो पीता है, अपना ही खून ए शाकी|
किसी के वास्ते, हरदम शराब बहती है॥
-हिम्मत सिंह नाजिम
जिन्दगी एक आंसुओं का जाम थी|
पी गये कुछ और कुछ छलका गये॥
-शहीद कबीर
मौत ने मुको उस दम सहारा दिया|
जिन्दगी जब आंसू बहा न सकी॥
-रैना सागर
तुमने तो अपने हुस्न को महफूज कर लिया|
हम किसके साथ उम्रे-मुहब्बत बसर करें॥
-सीमाब अकबराबादी
अबरू (भंवें) न संवारो कहीं कट जायेगी उंगली|
नादन हो, तलवार से खेला नहीं करते॥
-निजाम रामपुरी
दरियाई-हुस्न और भी दो हाथ गढ गया|
अंगड़ाई उसने नशे में ली, जब उठा के हाथ॥
-शैख़ नासिख
उसकी आंखों से है ख्वाबों का अनोखा रिश्ता|
अपना दु:ख-सुख भी उसी शोख की अंगड़ाई है॥
-हसन नईम
मैं सोचता हूँ, जमाने का हाल क्या होगा?
अगर ये उलझी हुई जुल्फ तूने सुलझाई?
-अहमद राही
संवर के आये जिस दिन आईने के करीब|
तो आईने ने तुझे लाजवाब देखा है॥
-साहिल झांसवी
आईना देखते हैं, मगर है ये डर कहीं|
लग न जाये उनको, अपनी नजर कहीं॥
-शैदा कौलवी
आईना देखते हैं, छुप-छुप के बार-बार|
जुल्फेें बिगाड़ के, कभी जुल्फें संवार के॥
-हक कानपुरी
अगर यकीन नहीं आता तो आजमाये मुझे|
वो आईना है तो फिर, आईना दिखाए मुझे॥
-बशीर बद्र

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